सुना के ग़म का तराना सुनो गया है वो सुरों के अश्क से दुनिया को धो गया है वो है उस के हुस्न के दरिया में ऐसी तुग़्यानी हमारे होश की बस्ती डुबो गया है वो हर इक क़दम पे है ठोकर में ज़िंदगी उस की अंधेरे जिस्म के सहरा में खो गया है वो थका थका सा बदन है मिरे तख़य्युल का शिकस्ता ख़्वाब के बिस्तर पे सो गया है वो दयार-ए-अंजुम-ओ-ख़ुर्शीद से वो आया था बगूला बन के ख़लाओं में खो गया है वो तुम इश्तिआ'ल के शो'लों को और भड़काओ लहू को सब्र के पानी से धो गया है वो नज़ारा देखने आया था जो बहारों का बदन को अपने लहू से भिगो गया है वो