सुना तो होगा ही सरकार झूट बोलते हैं निहाँ नहीं सर-ए-बाज़ार झूट बोलते हैं अदालतें हों कि मुंसिफ़ हो या गवाह कोई हमारे हक़ में ये हर बार झूट बोलते हैं हमारे शहर में भूका न मिल सकेगा कोई ये माल-ओ-ज़र के परस्तार झूट बोलते हैं मैं ला के चाँद भी दे दूँ जो तुम कहो जानाँ क़सम से इश्क़ के बीमार झूट बोलते हैं हमारा अह्द भरेगा तरक़्क़ियों की उड़ान सियासी लोग हैं अय्यार झूट बोलते हैं मोहब्बतों की रिवायत के पासबान हैं हम ज़बान काट दो अख़बार झूट बोलते हैं यक़ीन कैसे करें वाइ'ज़ों पे ऐ 'असअद' पहन के जुब्बा-ओ-दस्तार झूट बोलते हैं