कैसे जी पाऊँगा जुदा हो कर जा रहा है कोई ख़फ़ा हो कर ढूँढता फिर रहा है मुझ सा तू क्या मिला तुझ को बेवफ़ा हो कर भटके लोगों को मिल गई मंज़िल मैं बिछा जब से रास्ता हो कर घिर गया याद से बिछड़ते ही क़ैद में हो गया रिहा हो कर पत्थरों पर ये क्या असर करती लौट आई मिरी सदा हो कर साया-ए-दीं का ये सिला देखो मिल गया है सुकूँ फ़ना हो कर हम-सफ़र जब से तू हुआ 'असअद' इश्क़ उभरा है ख़ुश-नुमा हो कर