सुनाते रहिए हिकायात जागते रहिए बहुत मुहीब सही रात जागते रहिए अगर ख़राब हैं हालात जागते रहिए कि ये है वक़्त-ए-करामात जागते रहिए ये फ़ैसले की घड़ी है ठहर भी जाइए आप इसी तरह से मिरे सात जागते रहिए दुरुस्त कीजिए क़िबला दुरुस्त कीजिए काम दुरुस्त रखिए हिसाबात जागते रहिए वो सुब्ह जिस के लिए रात भर न सोए थे हुई तो देखा कि थी रात जागते रहिए तलाश-ए-सुब्ह में अपना निशाँ मिटा डाला और अब भटकते हैं दिन-रात जागते रहिए बहुत अज़ीज़ थी ग़फ़लत जो होश आ ही गया यही है उस की मुकाफ़ात जागते रहिए हज़ार ग़लबा-ए-शब हो थकन हो नींद आए अभी बहुत हैं मुहिम्मात जागते रहिए हर इक सवाल पे चलिए ये ख़ामुशी ही सही बहुत हैं मेरे सवालात जागते रहिए वो चर्ख़-ए-ज़ात से उतरें तो आसमान बनें खुले हैं सारे समावात जागते रहिए अधूरी बातें न उलझेंगी फिर निगाहों से मुदाम रखिए इनायात जागते रहिए निगाह लौटी तो ख़्वाबीदा ज़ह्न जाग उठा हुए हैं पैदा किनायात जागते रहिए वो ख़ास बात जो मंसूब आप से है हुज़ूर उसी से निकले नई बात जागते रहिए