सुनाऊँ दास्ताँ तुम को अलम की नहीं है इंतिहा कुछ मेरे ग़म की मैं ख़ुद ही हूँ सज़ा-वार-ए-ज़माना किसी ने मेरी ख़ातिर आँख नम की मेरा महबूब जब मुझ को मिला है नहीं हाजत किसी रहम-ओ-करम की हुए हैं रास्ते हमवार ख़ुद ही कोई परवा नहीं है पेच-ओ-ख़म की मेरी तक़दीर वाबस्ता तुम्हीं से यही तहरीर है लौह-ओ-क़लम की हवादिस हैं हमेशा साथ मेरे नहीं है बात कुछ जौर-ओ-सितम की 'नसीम' अब एक ही मेरी ख़ुशी है तमन्ना-ए-दिली बाब-ए-हरम की