सुनाया यार नीं आ कर दो तारा By Ghazal << इक क़यामत का घाव आँखें थी... प्यास जो बुझ न सकी उस की ... >> सुनाया यार नीं आ कर दो तारा बुलंदी पे चढ़ा मेरा सितारा मज़ेदारी है सारी हिन्द के बेच न कर अज़्म-ए-समरक़ंद-ओ-बुख़ारा रहा है इश्क़-बाज़ी बेच वो चुस्त बुताँ कन नक़्द-ए-दिल कूँ जिन नीं हारा रहेगा जान जीता क्यूँके 'यकरू' निगह का तीर तुझ अँखियाँ नीं मारा Share on: