सुनी है उस ने न अपनी कभी सुनाई है हमारे बीच फ़क़त इक यही लड़ाई है किसी ने ख़ुद से तराशा है उस को थोड़ा बहुत किसी के वास्ते दुनिया बनी-बनाई है भले ये सर ही कटे पर कहीं जबीं न झुके हमारे पुरखों ने दौलत यही कमाई है ये ज़िंदगी ये ख़ुशी और ग़म भी तुम बाँटो तुम्हारे पास तो वैसे भी कुल ख़ुदाई है 'मुनीब' ऐसे ज़माने में हूँ उतारा गया जहाँ मलाल है मातम है ना-रसाई है