सुनी किसी ने कहाँ मेरे इंतिज़ार की बात हर इक ज़बाँ पे रही इख़्तियार-ए-यार की बात अभी है वक़्त चलो राब्ता बहाल करें दिलाएँ याद उसे अहद-ए-पाएदार की बात अभी हैं कर्ब के कुछ और मरहले बाक़ी अभी चली ही कहाँ है मिरे दयार की बात यहाँ शजर का शजर दाव पर है नादानो तुम्हारे लब पे वही शाख़-ओ-बर्ग-ओ-बार की बात बड़ा बलीग़ इशारा था उस की बातों में हमारा ज़िक्र था और राह के ग़ुबार की बात किसी के दिल के उजड़ने की बात है 'अनवर' ख़िज़ाँ की बात नहीं है नहीं बहार की बात