सुनिए हुज़ूर मुझ को नहीं सादगी पसंद कुछ कुछ फ़ुसूँ के साथ है कुछ ख़ामुशी पसंद रहते हैं साँप बन के मिरी आस्तीं में जो उन दोस्तों की मुझ को नहीं दोस्ती पसंद विर्से में ये मिली थी मुझे मेहरबाँ मिरे इस वास्ते मुझे है बहुत तीरगी पसंद मुझ से मिला था ख़्वाब के आलम में और कहा मैं बे-सुकूँ था इस लिए की ख़ुद-कुशी पसंद बे-सम्त कर रहा हूँ सफ़र जान-बूझ कर किस ने कहा मुझे है मियाँ रौशनी पसंद लड़की तो कह रही है मुझे ना-पसंद है अब तो बता है तुझ को वही वाक़ई पसंद देखो मुमासलत की भी हद हो गई 'सहर' उस को है चाँद मुझ को बहुत चाँदनी पसंद