सुनोगे तुम भी मिरी दास्ताँ कभी न कभी असर दिखाएगा दर्द-ए-निहाँ कभी न कभी कभी तो आतिश-ए-नमरूद सर्द भी होगी क़रार पाएगा क़ल्ब-ए-तपाँ कभी न कभी ये आज गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर बताती है नज़र बचाएगा ख़ुद आसमाँ कभी न कभी कभी तो गौहर-ए-नायाब हाथ आएगा मिलेगा रूह-ए-ख़ुदी का निशाँ कभी न कभी जमूद-सेहर-तमन्ना में रह नहीं सकता फ़रोग़ पाएगा अज़्म-ए-जवाँ कभी न कभी अज़ाँ बिलाल की गूँजी है रेगज़ारों में सुनेगा दिल की सदा ये जहाँ कभी न कभी 'अज़ीज़' तेरी मोहब्बत भी रंग लाएगी तमाम होगा ग़म-ए-बेकराँ कभी न कभी