उठो रिदा-ए-रऊ'नत को तार तार करें ख़ुदा के नाम पे इंसानियत से प्यार करें चलो चमन में चराग़ाँ ब-सद वक़ार करें बढ़ो हयात के दामन को लाला-ज़ार करें नई फ़ज़ाएँ नई निकहतें नई राहें गुल-ए-मुराद से दामन को मुश्क-बार करें भटक न जाए ये इंसान आज राहों में निशान-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद उस्तुवार करें उफ़ुक़ के पार जो मौज-ए-शमीम बिखरी है उसी से ग़ुंचा-ए-ख़ातिर को मुश्क-बार करें फ़लक पे आज सितारों को ढूँडने वाले मिरी नज़र के सितारों का कुछ शुमार करें 'अज़ीज़' आज ग़म-ए-दिल की दास्ताँ कह कर वो चाहते हैं ज़माने को सोगवार करें