सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो शायद कि अभी ख़्वाब से बेदार हुए हो मंज़िल है कहाँ तुम को दिखाई नहीं देगी तुम अपने लिए आप ही दीवार हुए हो एहसास की दौलत जो मिलेगी तो कहाँ से कुछ भी न रहा पास तो होशियार हुए हो सोचो तो है मौजूद न सोचो तो नहीं है जिस दाम में तुम लोग गिरफ़्तार हुए हो अपने से तग़ाफ़ुल है कि बे-राह-रवी है क्या सोच के दुनिया के तलबगार हुए हो ये रिश्ता-ए-दिल तोड़ के क्या तुम को मिला है टूटे हुए पत्ते की तरह ख़्वार हुए हो पहले भी कभी नूर का एहसास हुआ था या आज ही इस ग़म से ख़बर-दार हुए हो मजनूँ हो तो है ख़ाक उड़ाने से तुम्हें काम यूसुफ़ हो तो रुस्वा सर-ए-बाज़ार हुए हो कल तक तो इन आँखों में मुरव्वत की झलक थी फ़ित्ना हो तो फिर आज ही बेदार हुए हो कोई उफ़ुक़-ए-दिल पे नुमूदार तो हो ले तुम किस के क़दम लेने को तय्यार हुए हो ये छब ये झमक आँख से देखी नहीं जाती तुम उड़ते हुए वक़्त की रफ़्तार हुए हो 'शहज़ाद' तअस्सुफ़ न करो बे-असरी पर तुम दस्त-ए-रसा कब थे कि बेकार हुए हो