सुर्ख़ होंटों से मिरे दिल पे निशानी लिख दे तू मिरे नाम के आगे कभी जानी लिख दे उम्र गुज़री है मिरी शाम-ए-फ़ुरात-ए-दिल में मैं हूँ प्यासा मिरे नुस्ख़े में तू पानी लिख दे अब तिरी याद भी कम कम ही मुझे आती है जाने किस तरह से गुज़री है जवानी लिख दे आरज़ू एक ही इस दिल में रही है रक़्साँ तू कोई मेरे लिए शाम सुहानी लिख दे मेरे अफ़्साना-ए-हस्ती में है तू भी शामिल मिरी नाशाद मोहब्बत की कहानी लिख दे ऐन मुमकिन है मिरे दिल को सुकूँ मिल जाए सफ़्हा-ए-दिल पे कोई याद पुरानी लिख दे मैं तो 'ग़ालिब' का मुक़ल्लिद हूँ 'कँवल' मेरे लिए मिरे ख़ामे के मुक़द्दर में रवानी लिख दे