सुर्ख़ सुनहरी सब्ज़ और धानी होती है झील किनारे शाम सुहानी होती है ख़ुद से जब भी आँख मिलानी होती है आँख तो जैसे पानी पानी होती है रक़्स करे और आँख में पानी भर आए हर लड़की थोड़ी दीवानी होती है कितनी बोझल है ख़िफ़्फ़त की गठरी भी जो मुझ को हर रोज़ उठानी होती है वो कब बिना बताए वा'दा तोड़ गया आँखों से भी आना-कानी होती है नानी के चेहरे की लकीरों को बुनती बचपन की हर शाम कहानी होती है कैसे कह दूँ मुझे मोहब्बत है तुम से तुम से तो हर बात छुपानी होती है दिल के दरवाज़े पर आहट सुनती हूँ जभी तो आँखों में हैरानी होती है भीगे भीगे होंट जहाँ हूँ शबनम के वहीं कहीं पर रात की रानी होती है रोज़ निगाहें सच कह देती हैं सारा रोज़ मुझे ही बात बनानी होती है तुम से मिल कर 'सीमा'-नक़वी ख़ुद अपने होने की भी याद-दहानी होती है