सुर्ख़-रू होने के क़ाबिल क्या हिना थी मैं न था आप के क़दमों के नीचे उस को जा थी मैं न था देखते क्या हो उधर गर ज़ुल्फ़ बरहम हो गई ये सरासर हरकत-ए-बाद-ए-सबा थी मैं न था जल गए अग़्यार सब महफ़िल में आने से मिरे ऐ परी ये गर्मी-ए-आह-ए-रसा थी मैं न था क्यूँ न उस हसरत से मेरा शीशा-ए-दिल चूर हो बाग़ था साक़ी था सब्ज़ा था हवा थी मैं न था