सुर्ख़-रू सब को सर-ए-मक़्तल नज़र आने लगे जब हुए हम आँख से ओझल नज़र आने लगे शहर वालो जान लेना गाँव मेरा आ गया बच्चियों के सर पे जब आँचल नज़र आने लगे हम ने माँगी भी दुआ-ए-अब्र-ए-रहमत किस घड़ी जब सरों पर ज़ुल्म के बादल नज़र आने लगे आइने पर आज के जमने न दे माज़ी की धूल ताकि तेरा आने वाला कल नज़र आने लगे हम वहाँ तक भी न पहुँचे जिस बुलंदी से गिरे जब कि पिछड़े लोग भी अव्वल नज़र आने लगे लोग तो कहते थे 'आज़िम' ये कभी फलती नहीं ज़ुल्म की टहनी पे कैसे फल नज़र आने लगे