किरन इक मो'जिज़ा सा कर गई है धनक कमरे में मेरे भर गई है उचक कर देखती थी नींद तुम को लो ये आँखों से गिर कर मर गई है ख़मोशी छुप रही है अब सदा से ये बच्ची अजनबी से डर गई है खुले मिलते हैं मुझ को दर हमेशा मिरे हाथों में दस्तक भर गई है उसे कुछ अश्क लाने को कहा था कहाँ जा कर उदासी मर गई है उजालों में छुपी थी एक लड़की फ़लक का रंग-रोग़न कर गई है वो फिर उभरेगी थोड़ी साँस भरने नदी में लहर जो अंदर गई है