तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या मेरा वतन ज़मीं है मुझे आसमाँ से क्या टुकड़े जिगर के हों कि टपकता हो ख़ून-ए-दिल उनवाँ जो तुम नहीं तो तुम्हें दास्ताँ से क्या जीना जो जानता हो तड़प कर तिरे बग़ैर इस को तिरी गली से तिरे आस्ताँ से क्या उन का न सामना हो उसी में है आफ़ियत क्या जानिए कि निकले हमारी ज़बाँ से क्या उतरेगा जब ख़ुमार वही होंगे रंज-ओ-ग़म दिल को सुकूँ मिलेगा मय-ए-अर्ग़वाँ से क्या ऐ दिल है किस लिए तुझे आवारगी का शौक़ तू भी बिछड़ गया है किसी कारवाँ से क्या ग़म है शिकस्त का न ख़ुशी फ़त्ह की 'फ़लक' मुझ को अमल से काम है सूद-ओ-ज़ियाँ से क्या