ये और बात है हर शख़्स के गुमाँ में नहीं ज़मीं कहाँ है जो आग़ोश-ए-आसमाँ में नहीं ज़िया-फ़राज़ जहाँ हैं हज़ार माह-ओ-नुजूम चराग़ कोई मगर मेरे आशियाँ में नहीं वफ़ूर-ए-इश्क़ की नैरंगियाँ अरे तौबा जो दिल में दर्द है वो दिल की दास्ताँ में नहीं तुम अपना तीर-ए-अदा मेरी रूह में ढूँडो इन अब्रुओं की लचकती हुई कमाँ में नहीं ये और बात कि गुलशन पे गिर पड़े बिजली कमी तो कोशिश-ए-तंज़ीम-ए-गुलिस्ताँ में नहीं जो अपनी सुस्त-रवी का इलाज कर न सके मक़ाम उस का कोई अहल-ए-कारवाँ में नहीं रुमूज़-ए-उक़्बा से अहल-ए-ज़मीं हों क्या वाक़िफ़ किसी भी पहलू कोई रब्त दो-जहाँ में नहीं 'फ़लक' मैं कैफ़िय्यत-ए-दिल से ख़ुद परेशाँ हूँ किसी फ़ुग़ाँ में असर है किसी फ़ुग़ाँ में नहीं