तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ इक दिल-ए-दर्दमंद रखता हूँ बहुत कहता नहीं मैं पस्ती को अपनी फ़ितरत बुलंद रखता हूँ चश्म-ए-बातिन से देखता हूँ मैं चश्म-ए-ज़ाहिर को बंद रखता हूँ लफ़्ज़ शीरीं हैं और मअ'नी तल्ख़ ज़हर-आमेज़ क़ंद रखता हूँ कामयाबी मुहाल है 'अख़्तर' ज़ौक़ इतना बुलंद रखता हूँ