ताब नहीं सुकूँ नहीं दिल नहीं अब जिगर नहीं अपनी नज़र किधर उठे कोई इधर उधर नहीं रोज़ शब उठते बैठते उन की ज़बान पर नहीं कोई नहीं की हद नहीं शाम नहीं सहर नहीं कोई यहाँ से चल दिया रौनक़-ए-बाम-ओ-दर नहीं देख रहा हूँ घर को मैं घर है मगर वो घर नहीं इतनी ख़बर तो है ज़रूर ले गए दिल वो छीन कर क्या हुआ उस का फिर मआल इस की मुझे ख़बर नहीं क्यूँ वो इधर उधर फिरे क्यूँ ये हुदूद में रहे तेरी नज़र तो है नज़र मेरी नज़र नज़र नहीं मुझ से बिगड़ कर अपने घर जाइए ख़ैर जाइए आप ने ये समझ लिया आह में कुछ असर नहीं दैर को हम घटाएँ क्यूँ काबे को हम बढ़ाएँ क्यूँ क्या है ख़ुदा का घर यही क्या वो ख़ुदा का घर नहीं पर्दे से बाहर आइए रुख़ से नक़ाब उठाइए ताब-ए-जमाल ला सके इतनी मिरी नज़र नहीं मुझ को ख़याल-ए-रोज़-ओ-शब ख़ाक रहे मज़ार में ऐसी जगह हूँ जिस जगह शाम नहीं सहर नहीं तेग़ कहो सिनाँ कहो क़हर कहो बला कहो अहल-ए-नज़र की राय में उन की नज़र नज़र नहीं डर गए अहल-ए-अंजुमन तीर जो आप का चला इस ने कहा इधर नहीं उस ने कहा उधर नहीं रोज़ के ग़म ने इस तरह ख़ूगर-ए-ज़ब्त-ए-ग़म किया दर्द हमारे दिल में है शिकवा ज़बान पर नहीं पूछते हैं वो हाल-ए-दिल तूल-ए-सुख़न से फ़ाएदा सौ की ये एक बात है कह दूँ मुझे ख़बर नहीं उन में कुछ और बात थी इन में कुछ और बात है हज़रत-ए-'नूह' का गुमाँ हज़रत-ए-नूह पर नहीं