वो सूरज इतना नज़दीक आ रहा है मिरी हस्ती का साया जा रहा है ख़ुदा का आसरा तुम दे गए थे ख़ुदा ही आज तक काम आ रहा है बिखरना और फिर उन गेसुओं का दो-आलम पर अँधेरा छा रहा है जवानी आइना ले कर खड़ी है बहारों को पसीना आ रहा है कुछ ऐसे आई है बाद-ए-मुआफ़िक़ किनारा दूर हटता जा रहा है ग़म-ए-फ़र्दा का इस्तिक़बाल करने ख़याल-ए-अहद-ए-माज़ी आ रहा है वो इतने बे-मुरव्वत तो नहीं थे कोई क़स्दन उन्हें बहका रहा है कुछ इस पाकीज़गी से की है तौबा ख़यालों पर नशा सा छा रहा है ज़रूरत है कि बढ़ती जा रही है ज़माना है कि घटता जा रहा है हुजूम-ए-तिश्नगी की रौशनी में ज़मीर-ए-मय-कदा थर्रा रहा है ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे कश्तियों को बड़ी शिद्दत का तूफ़ाँ आ रहा है कोई पिछले पहर दरिया-किनारे सितारों की धुनों पर गा रहा है ज़रा आवाज़ देना ज़िंदगी को 'अदम' इरशाद कुछ फ़रमा रहा है