तबस्सुम लब पे आँखों में मोहब्बत की कहानी है तुम्हारी हर अदा में इक नशात-ए-कामरानी है बहुत ही मुख़्तसर अपनी हदीस-ए-ज़िंदगानी है तिरे आरिज़ के जल्वे हैं मिरा ख़्वाब-ए-जवानी है इसी साग़र में साक़ी देख आब-ए-ज़ि़ंदगानी है कि मौज-ए-मय में पिन्हाँ राज़-ए-उम्र-ए-जावेदानी है वही तन्हाई का आलम वही है याद फिर उन की वही मैं हूँ वही फिर सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी है बहार आई है गुलशन में मगर कुम्हला गए ग़ुंचे गुलों के लब पे या-रब आज काँटों की कहानी है अजल को भी पुकारा है दुआ-ए-ज़ीस्त भी की है कभी दश्त-ए-जुनूँ की हम ने 'मंज़र' ख़ाक छानी है