ता-ब-कै तीर पे ओ तीर लगाने वाले देख मर जाएँ न ये नाज़ उठाने वाले जान दे दूँगा कहा मैं ने तो वो कहते हैं ऐसे देखे हैं बहुत जान से जाने वाले जिस तरह अपनी बसर होती है हो जाती है ख़ुश रहें शाद रहें दिल के जलाने वाले जज़्ब-ए-दिल चाहे है उल्फ़त में असर हो साहिब बिन बुलाए ही चले आते हैं आने वाले शुक्र करते हैं शिकायत की जगह हम हर बार हम से कम होंगे तिरे जौर उठाने वाले दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम हैरत-ओ-यास-ओ-हिरमाँ यही मेहमान तो हैं आ के न जाने वाले उन के कूचे से मैं गुज़रा तो कहा शोख़ी से क्यों इधर आते हैं सुनते भी हो जाने वाले जान देने को हैं तय्यार 'जरीह'-ए-मुज़्तर तुम ने देखे नहीं क्या नाज़ उठाने वाले