इधर भी मेहरबानी कीजिएगा ज़मीं को आसमानी कीजिएगा ज़रा सा मुस्कुरा कर जान-ए-जानाँ फ़ज़ा को ज़ाफ़रानी कीजिएगा चराग़ों की ज़मीं पर बंदा-पर्वर हवा से हुक्मरानी कीजिएगा हमारी दास्तान-ए-ग़म का चर्चा कभी अपनी ज़बानी कीजिएगा किनारे पर डुबो कर अपनी कश्ती समुंदर पानी पानी कीजिएगा