तड़प रही है ज़मीं अपनी संग-ए-दर के लिए By Ghazal << वो ख़यालों में भी इस तरह ... दर्द पुर्सिश से सिवा होता... >> तड़प रही है ज़मीं अपनी संग-ए-दर के लिए बस एक सज्दा ही काफ़ी है उम्र भर के लिए उजाले बाँट के दुनिया को ये ख़याल आया कोई चराग़ नहीं रक्खा अपने घर के लिए मुझे यक़ीन है देखूँगा अपनी आँखों से चराग़-ए-दिल को जलाया है जिस सहर के लिए Share on: