तड़प से चीख़ उट्ठेगा जो उसे ख़ूँ-ख़ार कह देंगे कहेगा आप-बीती जो उसे बीमार कह देंगे ये आलम है कि गर कुछ भी कहा इन अक़्ल वालों से तो ये उस में मिला कर और भी दो-चार कह देंगे वो रहते हैं जहाँ पर जानते हैं ये जहन्नुम है मगर बेचारे ग़म के मारे सब फ़िन्नार कह देंगे गर उन से पूछा जाए आप ने आख़िर किया ही क्या खड़ी कर आठ दस ईंटें उसे मीनार कह देंगे बवंडर से मकाँ गर गिर गए मेरे अदूओं के तो ये तानूर को भी मेरा जानिबदार कह देंगे रहा जो फूलों से पर्दे हटाने की हिमायत में उसी ग़म-ख़्वार को सब तालिब-ए-दीदार कह देंगे बदलते दौर में इक खेल देखेगा मदारी भी रखा जो जेब में होगा उसे दीनार कह देंगे मिरे हाथों बनेगा जो भी वो बे-कार ही होगा मुसव्विर की हर इक तस्वीर को शहकार कह देंगे हुनर अब सीख लो 'झाला' कहीं से ग़म-निगारी का यहाँ सब दिल जले ही हैं तुम्हें फ़नकार कह देंगे