ख़ल्वतों से निबाह कर आया ज़िंदगी को तबाह कर आया रौशनी के थे सब मुरीद सो मैं तीरगी से निकाह कर आया बे-सबब सर धरा गया इल्ज़ाम इस लिए मैं गुनाह कर आया उस की ओर देखा तक नहीं मैं ने कोह का फ़ख़्र काह कर आया ज़िक्र कर यारों में मोहब्बत का जंग की इफ़्तिताह कर आया देख कर मुझ को तंज़ कस रहे थे हँस के मैं वाह-वाह कर आया