तड़पने की इजाज़त जज़्बा-ए-बिस्मिल से मिलती है जो दिल मुश्ताक़ हो तो फिर ज़रा मुश्किल से मिलती है वो हक़ सच की इबारत पढ़ने से महरूम रहते हैं कि जिन को रौशनी की लौ रुख़-ए-बातिल से मिलती है मुझे ज़िंदा जलाए तुझ को भी ज़िंदा ही दफ़नाए मिरे क़ातिल की फ़ितरत भी तिरे क़ातिल से मिलती है चकोरी देख ले तू भूल जाए चाँद को तकना दिल-ए-मुज़्तर को जो तस्कीन काले तिल से मिलती है ये दोनों जुड़वाँ भाई हैं नहीं इस में शुबह क्यूँकि मिरे मंसब की सूरत भी मिरे क़ातिल से मिलती है किसी अत्तार से मिलना तो 'पंछी' है बहुत मुश्किल जो दिल-आवेज़ ख़ुश्बू हुस्न की महफ़िल से मिलती है