ता-दश्त-ए-अदम आह-ए-रसा ले गई मुझ को जब ख़ाक हुआ मैं तो हवा ले गई मुझ को कोसों मय-ए-गुलगूँ की हवा ले गई मुझ को ये लाल परी घर से उड़ा ले गई मुझ को मुद्दत से न मिलती थी कहीं राह अदम की उस शोख़ के कूचे में क़ज़ा ले गई मुझ को था ज़ोफ़ में सौदा किसी सहरा-ए-जुनूँ का वहशत मिरे घर आ के बुला ले गई मुझ को 'जौहर' तरफ़-ए-कूचा-ए-जानाँ जो गया मैं क्या जाने किधर की ये हवा ले गई मुझ को