पास-ए-वहशत है तो याद-ए-रुख़-ए-लैला भी न कर इश्क़ को क़ैदी-ए-ज़ंजीर-ए-तमन्ना भी न कर मौज-ए-ख़ुद्दार अगर है तो सू-ए-ग़ैर न देख किसी तूफ़ाँ किसी साहिल का भरोसा भी न कर ज़ीनत-ए-दहर इक आराइश-ए-बातिल ही सही निगह-ए-शौक़ को महरूम-ए-तमाशा भी न कर शिर्क है शिर्क ये ऐ वाइ'ज़-ए-आशुफ़्ता-ख़याल ग़म-ए-उक़्बा को शरीक-ए-ग़म-ए-दुनिया भी न कर कैफ़-अंगेज़ नहीं बादा-ए-इमरोज़ न हो दिल को हसरत-कश-ए-पैमाना-ए-फ़र्दा भी न कर महरम-ए-राज़-ए-मोहब्बत है अगर दिल तेरा तो ख़ुदा के लिए इस राज़ को रुस्वा भी न कर हैरत-ए-शौक़ ही बन जाए न ग़म्माज़ 'रविश' तो इस अंदाज़ से नादाँ उसे देखा भी न कर