तग़ाफ़ुल और करम दोनों बराबर काम करते थे जिगर के ज़ख़्म भरते थे तो दिल के दाग़ उभरते थे ख़ुदा जाने हमें क्या था कि फिर भी उन पे मरते थे जो दिन भर में हज़ारों वा'दे करते थे मुकरते थे न पूछो उन की तस्वीर-ए-ख़याली की सजावट को उधर दिल रंग देता था इधर हम रंग भरते थे मोहब्बत का समुंदर उस की मौजें ऐ मआ'ज़-अल्लाह दिल इतना डूबता जाता था जितना हम उभरते थे अजब कुछ ज़िंदगानी हो गई थी हिज्र में अपनी न हँसते थे न रोते थे न जीते थे न मरते थे शहीदान-ए-वफ़ा की मंज़िलें तो ये अरे तो ये वो राहें बंद हो जातीं थीं जिन पर से गुज़रते थे न पूछो उस की बज़्म-ए-नाज़ की कैफ़िय्यतें 'मंज़र' हज़ारों बार जीते थे हज़ारों बार मरते थे