उस से जी भर के मिली दाद-ए-तमन्ना मुझ को जिस ने तस्वीर तिरी देख के देखा मुझ को देखने वाले ये किस शान से देखा मुझ को आज दुनिया के मज़े दे गई दुनिया मुझ को जज़्ब-ए-दिल तेरे करिश्मों ने उलट दी दुनिया अब सुनाते हैं वो ख़ुद मेरा फ़साना मुझ को बे-तहाशा तिरी तस्वीर पे जाती है निगाह जब कोई कहता है तक़दीर का मारा मुझ को एक धज आलम-ए-वहशत में बदलता हूँ रोज़ चाहता हूँ कि कहें लोग तुम्हारा मुझ को घर को छोड़ा है ख़ुदा जाने कहाँ जाने को अब समझ लीजिए टूटा हुआ तारा मुझ को दिल लहू कर गया आग़ाज़-ए-मोहब्बत 'मंज़र' और अभी देखना बाक़ी है नतीजा मुझ को