तग़ाफ़ुल बे-नियाज़ी का गिला काफ़ी नहीं है मिरा रस्ता ही रोको अब सदा काफ़ी नहीं है ये गहरी काली आँखें देख तो क्या कह रही हैं इन्हें पाबंद रखने को वफ़ा काफ़ी नहीं है तुम्हारे कासा-ए-उल्फ़त में कुछ सिक्के उछाले तुम्हारा दिल लुभाया ये सिला काफ़ी नहीं है? ज़मीनी बात है ठहरेगी आख़िर जुस्तुजू पर हमेशा साथ रहने की दुआ काफ़ी नहीं है निभाना है बहर-सूरत ये कारोबार-ए-दुनिया कि इश्क़-ओ-आशिक़ी का सिलसिला काफ़ी नहीं है चलो अच्छा हुआ रफ़्तार तो कम हो गई पर बिछड़ जाने को अब भी फ़ासला काफ़ी नहीं है जमाल-ए-काएनाती मो'जिज़ा है हुस्न-ए-कुन का यहाँ पर इर्तिक़ा का फ़ल्सफ़ा काफ़ी नहीं है