तहरीक-ए-ग़म-ओ-आलाम तो है तस्कीन-ए-दिल-ए-नाकाम नहीं कहने को तो दुनिया है लेकिन दुनिया में कहीं आराम नहीं रूदाद-ए-मोहब्बत के सदक़े रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए ये ऐसा फ़साना है जिस का आग़ाज़ तो है अंजाम नहीं तफ़्सीर-ए-हदीस-ए-उल्फ़त को ना-वाक़िफ़-ए-उल्फ़त क्या जाने ये बीते दिनों की बातें हैं अफ़्साना-ए-सुब्ह-ओ-शाम नहीं इतना तो ठहर ऐ गिर्या-ए-ग़म कर लेने दे मश्क़-ए-ज़ब्त-ए-अलम उमड़े हुए आँसू पी जाना हर एक के बस का काम नहीं क्यों पा-ए-नज़र में लग़्ज़िश है क्यों दस्त-ए-तलब थर्राते हैं रिंदों को ये कैसा आलम है गर्दिश में अभी तो जाम नहीं हम अहल-ए-मोहब्बत के दिल पर मालूम नहीं क्या बीत गई आँखों में तो आँसू मिलते हैं होंटों पे हँसी का नाम नहीं जो उन की नज़र ने बख़्शा है तुम क्या समझो तुम क्या जानो उस दर्द को ऐ दुनिया वालो जिस दर्द की लज़्ज़त आम नहीं वो जाम कि जिस के पीने से रिंदों का मुक़द्दर जाग उठे साक़ी की क़सम मयख़ाने में ऐसा तो कोई भी जाम नहीं क़िस्मत का कुछ इस में दख़्ल नहीं सीरत है 'कमाल' अपनी अपनी मैं लाख परेशाँ हूँ लेकिन ख़ुद-दारी पर इल्ज़ाम नहीं