तोहफ़ा ये मोहब्बत की नज़र छोड़ गई है कुछ कुछ ख़लिश-ए-दर्द-ए-जिगर छोड़ गई है पैमाने में साक़ी की नज़र मय की जगह पर पीने के लिए ख़ून-ए-जिगर छोड़ गई है जिस राह से ख़ुद गर्दिश-ए-दौराँ भी न गुज़री वो मेरे लिए राहगुज़र छोड़ गई है तंज़ीम-ए-चराग़ाँ के लिए ढूँढ के मुझ को घनघोर अँधेरों में सहर छोड़ गई है मुरझा न सका जो कभी गर्मी-ए-ख़िज़ाँ से उस फूल को गुलचीं की नज़र छोड़ गई है क्या सोच के मश्शाता-ए-ज़ौ रू-ए-उफ़ुक़ पर उलझे हुए गेसू-ए-सहर छोड़ गई है ऐ मस्लहत-ए-वक़्त ये क्यों आतिश-ए-हालात बस्ती में अकेला मिरा घर छोड़ गई है मैं क़त्ल हुआ हूँ तो मिरे ख़ून की हर बूँद तारीख़ के दामन पर असर छोड़ गई है पड़ते ही 'कमाल' उस की नज़र मुझ पे ब-सद-नाज़ इल्ज़ाम-ए-मोहब्बत मिरे सर छोड़ गई है