तय है अब राह-ए-मोहब्बत से गुज़रना मेरा फिर उसी राह में ख़ुशबू सा बिखरना मेरा अब भी ज़िंदा हैं कहीं मुझ में वो पहली सी मैं हो तिरी बात तो धीमे से मुकरना मेरा था यक़ीं दिल को तुम आओगे मनाने मुझ को फिर वो हर ग़म पे रुकना वो ठहरना मेरा कैफ़ियत है ये 'अजब सी है 'अजब सा 'आलम बस तुम्हें सोच के हर पल है सँवरना मेरा अब कोई ख़ौफ़ नहीं उस से बिछड़ जाने का कितनी हैरत से वो देखे है न डरना मेरा क्या ये वहशत है जुनूँ है कि फ़ुसूँ है क्या है चाहना टूट के फिर युंही बिफरना मेरा