ज़बाँ कर के मुक़फ़्फ़ल तुम सदाएँ चाहते हो सज़ा देते हो पहले फिर दु'आएँ चाहते हो घुटन है दर्द है दिल में छुपी तन्हाई है सिसकती है मोहब्बत तुम अदाएँ चाहते हो किया बर्बाद क़ुदरत को कुचल डाला मगर अब महकती सी फ़ज़ाएँ और घटाएँ चाहते हो सिमट कर ज़ात में अपनी क़फ़स में क़ैद हो कर तुम्हें परवाज़ की ज़िद है हवाएँ चाहते हो सुनो ख़ुद-ग़र्ज़ियों की कोई तो हो इंतिहा ना जफ़ा कर के हमीं से तुम वफ़ाएँ चाहते हो ज़मीं और आसमाँ आए न तुम को रास 'मीता' नहीं हैरत कि अब तुम भी ख़लाएँ चाहते हो