ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है हीला-साज़ी के लिए दाना-ए-ख़ाल अच्छा है दिल के तालिब नज़र आते हैं हसीं हर जानिब उस के लाखों हैं ख़रीदार कि माल अच्छा है ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं गो मुझे ख़ुद भी लेकिन रश्क कहता है कि ऐसा ही जमाल अच्छा है दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते उन के आने से जो बीमार का हाल अच्छा है मुतमइन बैठ न ऐ राह-रव-ए-राह-ए-उरूज तिरा रहबर है अगर ख़ौफ़-ए-ज़वाल अच्छा है न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर हिज्र अच्छा है कि 'महरूम' विसाल अच्छा है