तज़ाद-ए-फ़ितरत नफ़स नफ़स है कहीं मोहब्बत कहीं हवस है यहीं तो लेती है रूह साँसें ये दिल दरीचा बदन क़फ़स है गुलाब साअ'त रहे सलामत जहाँ भी ख़ुश्बू से रंग मस है मैं अपने ख़्वाबों की राख हूँ अब न आग बाक़ी न ख़ार-ओ-ख़स है नज़र जो आ न सके वो 'पिंहाँ' अगर यक़ीं है कि है तो बस है