तजस्सुस काहे का क्या हो गया है वो बिछड़ा कब है तुझ में खो गया है वही इक शख़्स जो कुछ भी नहीं था मुझे अपना के सब कुछ हो गया है छटा तो क्या है तेरे ग़म का बादल बरस कर और गहरा हो गया है मोहब्बत में तो रातें जागती हैं कोई कुछ सोच कर ही सो गया है वो इतने संग-दिल पहले कहाँ थे मिरा मिलना क़यामत हो गया है मुझे बे-मौत अब मरना पड़ेगा सुना है कोई मेरा हो गया है ग़ज़ल कह कर ग़म-ए-जानाँ से 'अंजुम' तअ'ल्लुक़ और गहरा हो गया है