तकल्लुफ़ात में लम्हात मत गँवाया कर बिला-इरादा भी थोड़ा सा मुस्कुराया कर हमारे सामने ये वज़्अ मत बनाया कर फ़राख़-दिल है तो हर बात भूल जाया कर हमारे शे'र तिरा ज़िक्र बात एक ही है हमारे शे'र हमें याद मत दिलाया कर तबीअतों की रवानी न जाने क्या दिखलाए किसी के ज़ाहिरी अहवाल पर न जाया कर किसी को ये लब-ओ-लहजा भला लगा है 'नसीम' ग़ज़ल भी तू इसी अंदाज़ में सुनाया कर