तख़रीब से ता'मीर के पहलू निकले ज़ुल्मात से तनवीर के पहलू निकले दरवाज़े भी रौशन हुए परतव से तिरे दीवारों से तस्वीर के पहलू निकले ख़ामोशी ने आवाज़ उठाई आख़िर नम आँखों से तक़रीर के पहलू निकले वो जिस प बसेरा किया आज़ादी ने उस शाख़ से ज़ंजीर के पहलू निकले महरूम-ए-तबस्सुम ही रहा अपना जहाँ क्या रोज़-ओ-शब-ए-‘मीर’ के पहलू निकले दुश्मन को कलेजे से लगाया हम ने तब क़ल्ब की तस्ख़ीर के पहलू निकले जब हो सका शहज़ादा-ए-दिल तख़्त-नशीं तब अद्ल-ए-जहाँगीर के पहलू निकले गुज़रा मिरे अल्फ़ाज़ पे तारों का गुमाँ तारों से भी तहरीर के पहलू निकले