तख़्त-ए-ताऊस मिरा तख़्त-ए-हज़ारा तुम हो मेरे शहज़ादे मिरी आँख का तारा तुम हो मैं तिरे इश्क़ में लैला तो कभी हीर बनी तुम हो मजनूँ या हो फ़रहाद गवारा तुम हो मैं ने काटी है तिरे प्यार में ये उम्र-ए-रवाँ जिस के ख़्वाबों में सदा वक़्त गुज़ारा तुम हो ज़ीस्त तो तेरी अमानत थी तिरे साथ रही और फिर खेल समझ कर जिसे हारा तुम हो जिस की आग़ोश में मेरा है सफ़ीना 'विशमा' इस समुंदर का मिरी जान किनारा तुम हो