ताकीद करो ज़मज़मा-संजान-ए-चमन को बेचैन हों दिल जिन से वो नग़्मे न अलापो ऐ अहल-ए-वतन! खाओ पियो शौक़ से लेकिन खेलो न कभी सर से कभी मुँह से न बोलो हर ताइर-ए-पर्रां के पर-ओ-बाल करो कैंच हर बंदा-ए-आज़ाद को शीशे में उतारो बन जाए रिवायत न कहीं हल्क़ा-ए-ज़ंजीर हर रफ़्ता को मौजूद की मीज़ान पे तोलो पुरसान-ए-परेशानी-ए-इंसाँ नहीं कोई क़िस्मत की गिरह नाख़ुन-ए-तदबीर से खोलो क्यूँ सर्फ़-ए-नज़र करते हो अंजाम से अपने क़ुदरत तो तरफ़-दार किसी की नहीं लोगो! हम तो हैं फ़क़त दिल-ज़दा-ए-ज़ौक़-ए-तमाशा रम हम से अबस करते हो ऐ ज़ोहरा-निगाहो! हम चश्म-ए-सहर, दीदा-ए-शब, दस्त-ए-सबा हैं पर्दा तो है ना-महरमों से लाला-अज़ारो! वो क़ौम कि नाम इस का मुसलमान है 'ख़ालिद' क्या याद है शर्त अंतुम-उल-आलाैन की उस को?