तलाश-ए-यार में हर मोड़ से गुज़रते हुए मिले हैं लोग मुझे टूटते बिखरते हुए कभी तो आ के मिरे दिल को दे तसल्ली भी ज़माना बीत गया इंतिज़ार करते हुए हवाएँ बुग़्ज़-ओ-कुदूरत की चल रही हों जहाँ बसाओ प्यार का गुलशन वहाँ पे डरते हुए ये सोच कर कोई अहद-ओ-वफ़ा करो मुझे से कि जान देंगे रह-ए-शौक़ से गुज़रते हुए तराश होने लगा बाग़बाँ बहारों से चमन के फूल नज़र आए जो बिखरते हुए ये माना काविशें क़िस्मत सँवार देती हैं ज़माना चाहिए तक़दीर को सँवरते हुए तुम्हारी बज़्म में आएगा 'आश्ना' इक दिन हुजूम-ए-यास की चादर को चाक करते हुए