तलाश जिन की है वो दिन ज़रूर आएँगे ये और बात सही हम न देख पाएँगे यक़ीं तो है कि खुलेगा न खुल सका भी अगर दर-ए-बहार पे दस्तक दिए ही जाएँगे ग़ुनूदा राहों को तक तक के सोगवार न हो तिरे क़दम ही मुसाफ़िर इन्हें जगाएँगे लबों की मौत से बद-तर है फ़िक्र-ओ-जज़्ब की मौत किधर हैं वो जो उन्हें मौत से बचाएँगे तवील रात भी आख़िर को ख़त्म होती है 'शरीफ़' हम न अँधेरों से मात खाएँगे