ख़राबी के नज़ारे उग रहे हैं मुनाफ़े' में ख़सारे उग रहे हैं तिरे होंटों पे कलियाँ खिल रही हैं मिरे आँखों में तारे उग रहे हैं फ़लक चूमे है धरती के लबों को कि धरती से किनारे उग रहे हैं तुम्हारे इश्क़ में जलने की ख़ातिर बदन में कुछ शरारे उग रहे हैं फ़लक के चाँद को छूने की ज़िद में 'रज़ा' जी पर हमारे उग रहे हैं