तलाश जिस की हो वो शय कभी नहीं मिलती क़रार दिल को लबों को हँसी नहीं मिलती भटकते फिरते हैं तारीक रहगुज़ारों में तिरे बग़ैर कहीं रौशनी नहीं मिलती चटकती रहती हैं कलियाँ भी गुल भी खिलते हैं निगाह-ओ-दिल को मगर ताज़गी नहीं मिलती हज़ार शाख़ें लचकती हैं मौसम-ए-गुल में शगुफ़्तगी है मगर नाज़ुकी नहीं मिलती रियाज़तों से निखरता है कोई भी फ़न हो अगर शुऊ'र न हो आगही नहीं मिलती हयात नाम है जेहद-ओ-अमल का ऐ लोगो जो थक के बैठे रहे ज़िंदगी नहीं मिलती हमेशा रहती हैं आँखें भरी भरी सी 'जमाल' किसी को पलकों पे मेरी नमी नहीं मिलती