याद आएगी उन्हें मेरी वफ़ा मेरे बाद नर्म गोशे उन्हें बख़्शेगा ख़ुदा मेरे बाद मुझ से आबाद थी दुनिया-ए-मोहब्बत ऐ दोस्त हर तरफ़ हो गई तारीक फ़ज़ा मेरे बाद महकी महकी हुई रहती थी हर इक फुलवारी बाग़ में आती नहीं बाद-ए-सबा मेरे बाद ग़ैरत-ए-हुस्न है बाक़ी न हिजाब आँखों में खींच ली किस ने सरों से ये रिदा मेरे बाद नज्द वीरान हुआ क़ैस के मर जाने से दश्त में कोई नहीं आबला-पा मेरे बाद जूही भी खिलती थी आँगन में महकते थे गुलाब सूनी सूनी हुई है घर की फ़ज़ा मेरे बाद भूल जाएगा वो सब जब्र-ओ-सितम अपने 'जमाल' वक़्त देगा उसे कुछ ऐसी सज़ा मेरे बाद